Krick और Nakchadi - 1 krick द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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Krick और Nakchadi - 1

ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल कायम करती है जो वास्तव मे प्रेम किसे कहते है वो सिखाती है। " ये कहानी स्कूल के उन दिनों की है जब मे स्कूल मे कक्षा ग्यारहवी मे पढ़ रहा था। तब मेरी पहली बार किसी लडकी के साथ दोस्ती हुवी थी। इसके पहले कोई भी लडकी मेरी दोस्ती नही बनी क्युकी मे खुद पढाई मे इतना खोया सा रहता की कभी ध्यान ही नही दिया की क्लास मे लड़किया भी पढ़ती है ! एक बार मे क्लास मे प्रोजेक्ट बना रहा था तब एक लडकी मेरे पास आई और मेरी आँखों मे आँखे डाल कर मुझसे बात करने लगी पहली बार मैने किसी की आँखों मे देखा था। क्या ही अलग सा वो एहसास था। लेकिन मैने उसे थोड़ा सा नजर अंदाज किया फिर  अपने काम मे लग गया। लेकिन फिर भी वो मुझसे बहुत सारी बाते कर ही रही थी उसका मुह बंध ही नही हो रहा  था वो बहुत बोल रही थी सायद वो बहुत पहले से ही मुझसे बात करने के मन बना कर के ही आई हुवी थी। उसका नाम जानवी था। जिसका प्यार से मैने नाम नकचडी रखा था याद है जिसने मुझे क्रिक नाम दिया था हा हा आप ठीक समजे वही लड़की । वो मेरे साथ बहुत ही मस्ती करती थी धीरे धीरे हमारी दोस्ती बहुत ही गेहरी हो गयी। उसके साथ मेरी बाते बहुत होने लगी कुछ भी हो हम एक दूसरे के साथ बाते करते। कोई भी प्रोजेक्ट, सेमिनार होता था तो हम दोनों साथ मे ही उसमे भाग लेते थे जिसकी वजसे एक दूसरे के व्यक्तित्व के बारे मे हम बहुत कुछ जानने लगे थे। एक दूसरे के सुख दुख स्वभाव सब कुछ हम दोनो धीरे धीरे समजते थे। मुझे पहली बार ऐसा लगा की कोई मेरे दिल के करीब आया है जिसने मुझे समजा है।

"कहानी मे अब मे यहाँ से खुद को अलग करके ये प्रेम कहानी दो व्यक्तित क्रिक और जानवी के रूप मे सुनाउगा अगर मैने एक ही तरफ से आपको ये प्रेम कहानी सुनाई तो दोनों की भावना इतनी अच्छी तरह से आपको समझा नही पाऊंगा। इस लिये मे खुद लेखक बनके खुद की ही कहानी दूसरे पात्रो के रूप मे आपको सुना ने जा रहा हु।

"जानवी बहुत ही ज्यादा क्रिक के साथ मस्ती मजाक करती रेहती थी जिसकी वजसे क्रिक ने उसका प्यार से नखरे करने वाली नखरे बाज " नकचडी " रख दिया था। नकचडी को डायरी लिखने का बहुत सोख था वो क्रिक के मिलने से पहले खुद से ही बाते करती रहती है रोज बरोज उसके साथ अच्छा हुआ बुरा हुआ सब कुछ वो डायरी मे लिख कर रखती थी। क्युकी तब उसका सुनने वाला उसको समज ने वाला कोई भी नही था। वो अपनी सारी बाते एक ऐसे इंसान के लिये लिखती थी जो उसे बाद मे पढेगा उसकी भावना की कद्र करेगा। और आखिर मे धीरे धीरे क्रिक ही उसकी डायरी का पढने वाला दोस्त बन गया। धीरे धीरे उन दोनों के बीच मे बहुत सारी बाते होने लगी। वो उसकी डायरी पढ़ने लगा था उसने जो कुछ भी लिखा था वो सब क्रिक के लिये ही था क्रिक तो उसे अभी अभी मिला था लेकिन वो प्यार तो उसे उसके मिलने से पहले से ही कर रही थी डायरी के साथ बाते करके उसने क्रिक की कल्पना कर रखी थी ये बात क्रिक को पता लगी तो वो भी अपने आसु रोक नही पाया क्रिक सोच ने लगा की कोई मुझसे मिले बिना ही कितना प्यार कर रहा था मुझे स्कूल के  समय मे इतना खुल के बात नही कर सकते थे। बहुत सारे नियम थे लड़का और लडकी ज्यादा साथ मे भी नही रह सकते थे इस लिये चोरी से चुपके चुपके से हमारे क्रिक और नकचडी बाते किया करते थे। तब उनके पास अपना खुद का फोन भी नही था। और क्रिक हॉस्टल मे रहता था और नकचडी का घर स्कूल के पास मे ही था जिससे वो घर से आया करती थी। इस वजसे बात करने के लिये हम अलग ही तरीका अपनाते थे शरुवात मे चिठ्ठी से बात चित होती थी लेकिन एक दूसरे की चिठ्ठी देते समय कोई देख ना ले उसका डर भी बना रहता था कोई और हमारा दोस्त देख ले तो भी दिक्कत हो सकती थी इस लिये एक किताब ही बनाई थी जो भी बात मुझे उसके साथ करनी थी वो एक दो पेज मे लिख कर उसे मे दे देता था अगले दिन उसे किताब वो उसे जो जवाब देना हो जो बोलना हो वो सब मुझे लिख कर देती थी । ऐसे ही हमारी बाते होती रहती थी। 

स्कूल लाइफ मे ऐसे ही बाते होती रहती थी एक दिन  वो हमारे लिये लिखती और दूसरे दिन वही हम पढ़ते और उनके लिये भी लिखते तो हमारे अंदर सिर्फ और सिर्फ वो ही घुमती उसकी ही याद उसकी ही बाते और बातो मे हवाई सपने यही सच्चा प्रेम होता है आज कल तो फोन आ गया है हम जल्दी से उसको जवाब दे देते है कई बार तो हाई हैलो से शरूआत होती और ब्लॉक कर के बात खत्म हो जाती झगड़े ही इतने होते लेकिन स्कूल के दिनों मे हमारे पास फोन नही था तो हम आमने सामने से बाते कम मन से दिल से ज्यादा बात करते थे जिसमे ना कभी लड़ते ना कभी रूठते केवल प्रेम ही प्रेम। अपनी ही कल्पना मे एक तरफा प्यार। 

वो भी क्या दिन थे जब फोन की जगह पर चिठ्ठीया भेजी जाती थी। प्रेम पत्र भेजे जाते थे। एक दूसरे से बात करने के लिये अगले दिन का इंतजार रहता था। पूरा हप्ता कहा निकल जाता पता ही नहीं चलता था। मिलने को इतना मन करता था की वेकेशन का मोह भी छुट जाता था। इतना प्रेम था की ये स्कूल बारवी तक ही क्यु होती है?? काश बीस साल ज्यादा होते तो कितना अच्छा होता साथ मे रहने मिलता। प्रेम मे ऐसे ऐसे विचार आते थे। 

"चलो दोस्तो मे चलता हूँ अगले भाग मे फिर मिलता हूँ।"